“माँ की आँखें अब भी रोशन थीं…”
इंदौर / भीलवाड़ा।
राखियाँ तो बंधी थीं… प्रेम की डोरियाँ भी जुड़ी थीं…
पर उस दिन, एक बहन ने रक्षाबंधन पर कुछ ऐसा किया —
जो रिश्तों की परिभाषा से भी परे था।
मोनिका लोढ़ा।
इंदौर निवासी बालचंद तातेड़ की लाड़ली बेटी,
भंवरलाल, मनोहरलाल और सुभाषचंद्र की सबसे छोटी बहन,
भीलवाड़ा निवासी श्री प्रदीप लोढ़ा की धर्मपत्नी,
और एक माँ… जो अपने बेटे शुभांशु की दुनिया थीं।
रक्षाबंधन के दिन, मोनिका ने सतिया जी म.सा को गोचरी दी।
उस दिन उनका चेहरा असाधारण रूप से शांत था… मानो भीतर से किसी अनदेखी यात्रा की तैयारी चल रही हो।
कुछ ही पल बाद, अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी।
बेटा दौड़ता हुआ उन्हें अस्पताल लेकर गया…
परंतु नियति की चुप्पी सब पर भारी थी।
डॉक्टरों ने कहा — “अब वे नहीं रहीं…”
उस क्षण शब्द थम गए,
राखियाँ सूनी हो गईं,
आँगन में मौन उतर आया,
लेकिन… उन आंखों में अब भी रौशनी थी।
माँ की आँखें अब भी रोशन थीं…
और उन रोशन आँखों में थी एक अंतिम करुण प्रार्थना,
किसी और की अंधेरी ज़िंदगी को
दिव्य प्रकाश देने की।
उस गहन दुःख की घड़ी में भी,
परिजनों ने मोनिका की अंतिम इच्छा-सी यह पुकार सुन ली —
और नेत्रदान का निर्णय ले लिया।
अब मोनिका की आंखें, दो अनजान चेहरों की रोशनी बनेंगी।
पत्रकार संघ कसरावद के अध्यक्ष श्री नितीश लुणिया ने बताया —
“मोनिका मासी नौ भाई बहनों में सबसे छोटी थीं, और सबसे ज़्यादा दुलारी। उनका जाना… शब्दों से परे है। लेकिन उनका जाना ही किसी और की सुबह बन गया है — इससे बड़ा पुण्य और क्या हो सकता है।”
इंदौर और भीलवाड़ा के सामाजिक संगठनों ने इस मानवीय पुण्य कर्म पर श्रद्धा से सिर झुकाया है।
श्रद्धांजलि में लिखा नहीं जाता… बस महसूस किया जाता है।
आज मोनिका नहीं हैं,
लेकिन उनकी आंखों से कोई और बेटा अपनी माँ को पहली बार देख सकेगा।
और कोई मोनिका की आँखों रौशनी में अपनी मंज़िलों पर आगे बढ़ेगा।
और हर रक्षाबंधन पर, ये रोशनी मोनिका की आत्मा से
एक नया आशीर्वाद बनकर लौटती रहेगी।
अनुभूति
एक माँ, एक बेटी, एक बहन…
जो चली गई — लेकिन अपनी आँखों से किसी और को ज़िंदगी देखने की वजह दे गई।
हम सबकी ओर से,
मोनिका लोढ़ा जी को अश्रुपूरित नमन।